
जम्मू और कश्मीर का मुद्दा 1948 से वहां रह रहे लोगो के लिए हमारी सेना तथा सरकार के लिए सर का दर्द बना हुआ है. 1948 में पाकिस्तान ने जम्मू और कश्मीर पे हमला कर जम्मू के कुछ हिस्सों पे अपना कब्ज़ा कर लिया था तभी से ये राज्य दोनों ही मुल्को की राजनीती का केंद्र बना हुआ है. इस राजनीती में अगर सबसे बड़ा नुकसान किसी का हुआ है तो वो है वहा के लोग. जिनमे से अधिकतर को न तो वहा के निवासी होने का अधिकार प्राप्त है और न ही एक नागरिक के तौर पे मिलने वाली सुविधाएं मिलती है.
इन सब के बिच वहा मौजूद सरकारों ने पिछले 70 सालो में धर्म की राजनीती पुरे जोरो से की है. वहा रह रहे लोगो को अलग अलग तरह से डरा के कभी जमीन के नाम पर तो कभी इस्लाम के नाम पर वोट बैंक बनाने और लूटने के अलावा और दूसरा कोई काम नहीं किया।
यह सभी बाते बेबुनियाद नहीं है इनके पीछे कारन है 1991 में लाखो कश्मीरी पंडितो का जम्मू और कश्मीर से पलायन और कत्लेआम, 1948 के भारत बिभाजन के वक़्त आये लाखो शरणार्थी जिनमे 80 प्रतिशत बाल्मीकि थे उन्हें आज तक कोई अधिकार नहीं मिला। यहाँ तक की जम्मू से बाहर शादी करने वाली महिलाओं तक के बच्चो को कोई अधिकार नहीं दिया जाता, उनसे `सारे अधिकार छीन लिए जाते है.
इन्ही सब यातनाओ को देखते हुए 2019 में भारत सरकार ने एक अहम् फैसला लिया जिसमे धारा 370 हटा के जम्मू के विशेष राज्य का दर्जा खत्म कर दिया गया जिसके तहत जम्मू में जम्मू से बाहर के लोगो को न तो किसी तरह के अधिकार थे न ही उन्हें जमीन लेने और घर बसाने की आज़ादी थी तथा और भी कई कानून थे जो जम्मू को विशेष राज्य का दर्जा देते थे जिसका फायदा वहा के निवासी कम और राजनितिक दल और आतंकवादी मानसिकता के लोग ज्यादा उठाते थे.
इस फैसले के भारत सर्कार ने मई 2020 में एक और ऐतिहासिक फैसला लेते हुए जम्मू में भेदभाव वाली निति में बड़े बदलाव किये है
– अब जम्मू में 15 सालो से रह रहे लोग वहा जमीन ले पाएंगे और वहा की नागरिकता भी ले पाएंगे।
– बाल्मीकि समाज के लोगो को भी वहा की नागरिकता मिल पायेगी और वो वहा के निवासी कहलायेंगे
– जम्मू से बाहर शादी करने वाली महिलाओं के बच्चे भी domicile के हक़दार होंगे।
– इसके साथ ही केंद्र सरकार के विभागों, PSU, सेंट्रल यूनिवर्सिटी, सार्वजनिक क्षेत्रो के बैंको, और केंद्र से मान्यता प्राप्त शोध संस्थानों में 10 सालो से काम करने वाले अधिकारी और उनके बच्चे भी नागरिकता प्राप्त कर पाएंगे.
तथा और भी कई बड़े फैसले किये गए है.
हम उम्मीद करते है की इस फैसले से कश्मीर से पलायन कर चुके तथा आज भी राहत शिविरों में रहने को मजबूर पंडितो को अपना घर और हक़ जरूर मिले।
Valuable information. Fortunate me I found your website by chance, and I’m shocked why this accident didn’t came about in advance! I bookmarked it.